जन्म से ही थी अश्वत्थामा के मस्तक पर एक दिव्य मणि, जानिए उससे जुड़ी अन्य खास बातें

महाभारत ग्रंथ में ऐसी कई रोचक प्रसंग मिलते हैं, जो बहुत ही प्रेरक हैं। इस ग्रंथ में कौरवों और पांडवों के बीच के हुए संघर्ष का वर्णन मिलता है। इस युद्ध में कई शक्तिशाली योद्धाओं ने भाग लिया था, जिसमें से अश्वत्थामा भी एक था। अश्वथामा के जन्म की कथा भी बहुत ही दिव्य है। चलिए जानते हैं इस बारे में।

इस तरह हुआ अश्वथामा का जन्मअश्वत्थामा, गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र था, जो कौरव और पांडवों के गुरु के रूप में जाने जाते हैं। कथा के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य अनेक स्थानों पर भ्रमण करते हुए हिमालय पहुंचे। वहां उन्होंने तमसा नदी के किनारे एक दिव्य गुफा में एक शिवलिंग स्थापित कर तप किया। भगवान शिव उनसे प्रसन्न हुए और उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया।

भगवान शिव के आशीर्वाद से कुछ समय बाद द्रोणाचार्य की पत्नी कृपि ने एक सुन्दर और तेजश्वी बालक को जन्म दिया। जब द्रोणाचार्य के पुत्र का जन्म हुआ तो वह बहुत तेज आवाज में रोया, जो एक घोड़े के समान थी। इसका वर्णन महाभारत ग्रंथ के इस श्लोक में मिलता है –

अलभत गौतमी पुत्रमश्‍वत्थामानमेव च।
स जात मात्रो व्यनदद्‍ यथैवोच्चैः श्रवा हयः।।
तच्छुत्वान्तर्हितं भूतमन्तरिक्षस्थमब्रवीत्।
अश्‍वस्येवास्य यत् स्थाम नदतः प्रदिशो गतम्।।
अश्‍वत्थामैव बाल्तोऽयं तस्मान्नाम्ना भविष्यति।
सुतेन तेन सुप्रीतो भरद्वाजस्ततोऽभवत्।।

दिव्य थी अश्वत्थामा के मसत्क की मणि
महाभारत ग्रंथ में इस बात का भी वर्णन मिलता है कि अश्वत्थामा का जन्म एक दिव्य मणि के साथ हुआ था, जो उसके मस्तक पर लगी हुई थी। यह मणि उन्हें सुरक्षा प्रदान करती थी। साथ ही यह मणि उन्हें शस्त्र, व्याधि, भूख, प्यास और थकान आदि से बचाती थी।

इसलिए मिला श्राप

युद्ध के बाद अश्वत्थामा ने पांडवों से अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए उनके शिविर पर हमला किया और उनके पुत्रों को मार डाला। साथ ही अश्वत्थामा ने उत्तरा की कोख में पल रहे शिशु पर ब्रह्मास्त्र का भी प्रयोग करता है। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण उत्तरा के गर्भ को बचा लेते हैं। अश्वत्थामा के इसी पाप के कारण भगवान श्रीकृष्ण ने उनके मसत्क पर लगी मणि भी ले लेते हैं। साथ ही उन्हें कलियुग के अंत तक माथे के घाव के साथ पृथ्वी पर भटकने का श्राप देते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button