निजी मेडिकल कालेजों को हाईकोर्ट का नोटिस: मेस, ट्रांसपोर्ट, हॉस्टल के नाम पर वसूली के खिलाफ याचिका

रायपुर :  ऊंची फीस लेने के बाद भी मेस, ट्रांसपोर्ट और हॉस्टल के नाम पर निजी मेडिकल कालेजों द्वारा मनमानी वसूली का दौर थम नहीं रहा है। इन मनमानी की वजह से प्रवेश से वंचित छात्रा की याचिका पर हाईकोर्ट ने सभी निजी कालेजों को नोटिस देकर दो सप्ताह में जवाब मांगा है। अप्रैल में इसी तरह की शिकायत के आधार पर प्रवेश एवं फीस विनियामक समिति ने तीन कालेजों पर 10-10 लाख का जुर्माना ठोका था। निजी चिकित्सा महाविद्यालयों द्वारा मोटी ट्यूशन फीस के साथ सुविधाओं के नाम पर पालकों पर मोटी फीस थोपी जाती है, जबकि एएफआरसी द्वारा तय शुल्क और अन्य सुविधाओं को आप्शनल निर्धारित किया गया है। निजी कालेज की ऐसी ही मनमानी की वजह से प्रवेश से वंचित छात्रा उच्च न्यायालय की शरण में गई। छात्रहित से जुड़े इस संवेदनशील मामले में मंगलवार को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई।

ईडब्ल्यूएस कैटेगरी से जुड़ी एक मेडिकल छात्रा प्रतीक्षा जांगड़े ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिका में बताया गया है कि कॉलेज के ट्रांसपोर्ट और हॉस्टल का उपयोग नहीं करने के बावजूद उससे प्रबंधन द्वारा लाखों रुपए वसूलने का दवाब बनाया जा रहा है। कॉलेज द्वारा फीस रेग्यूरेट्री नियम का पालन नहीं करने की बात कहीं गई है। चीफ जस्टिस की डीबी में हुई सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने तमाम निजी मेडिकल कॉलेजों से दो हफ्ते में जवाब मांगा है। याचिका में बताया कि, फीस रेग्यूरेट्री कमेटी ने निजी मेडिकल कालेजों के लिए ट्यूशन फीस का निर्धारण किया है। इसके अलावा मेस, ट्रांसपोर्ट और हॉस्टल को आप्शनल रखा गया है यानी इसकी सुविधा लेना विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य नहीं है। निजी कालेज इस नियम का पालन करने के बजाए सभी विद्यार्थियों से कैंटीन, परिवहन और आवास सुविधा शुल्क के रूप में बड़ी राशि जमा कराते हैं। इस मामले में प्रवेश एवं फीस विनियामक समिति पहले भी गंभीरता दिखा चुकी है और अप्रैल में तीन निजी चिकित्सा महाविद्यालयों पर इसके लिए 10-10 लाख का जुर्माना किया था।

एनआरआई कोटे का सवाल
दायर याचिका में यह भी बताया गया है कि कई गरीब वर्ग के छात्र नीट में चयनित होने के बाद भी इस फीस को जमा करने में असमर्थ रहते हैं और उन्हें सीट छोड़नी पड़ती है। इसी सीट को निजी कालेज एनआरआई कोटे में बदलकर बेच देते हैं। एनआरआई कोटे के तहत 33 हजार डालर प्रतिवर्ष फीस तय है। इसीलिए मेडिकल कालेजों की कमाई अधिक होती है। याचिका में प्रतीक्षा जांगड़े की ओर से पैरवी एडवोकेट हमीदा सिद्दीकी ने की। इसमें कहा गया कि अधिक फीस लेने के कारण छात्रा को मेडिकल सीट छोड़नी पड़ी और अब उसका भविष्य अंधकार में है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button