माता के इस चमत्कारी मंदिर में 100 साल से लगातार जल रही है अखंड ज्योति, चमत्कार देख अंग्रेज भी हुए थे दंग

डाट काली मंदिर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पास स्थित है। देहरादून से मंदिर की दूरी केवल 7 किलोमीटर है।  माना जाता है कि माता के इस चमत्कारी मंदिर में लगभग 100 साल से अखंड ज्योति लगातार जल रही है। यहां नवरात्रि के पर्व भारी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। साथ ही हर शनिवार को भी भक्त माता के दर्शन करने आते हैं। माता के इस मंदिर से जुड़ी मान्यताओं और इतिहास के बारे में आज हम आपको अपने इस लेख में जानकारी देंगे

डाट काली मंदिर का इतिहास 

डाट काली मंदिर की स्थापना लगभग 219 वर्ष पूर्व शिवालिक की पहाड़ियों में हुई थी। तब डाल काली माता का नाम मां घाठेवाली था। हालांकि, 1804 में इस मंदिर की पुनःस्थापना देहरादून के पास की गई और मां घाठेवाली से माता को डाट काली मां के नाम से पुकारा जाने लगा।

माता के चमत्कार को देख अंग्रेज भी हुए थे दंग

माना जाता है कि जब अंग्रेजों के समय में सहारनपुर रोड पर टनल का निर्माण हो रहा था तो कई कोशिशें करने के बाद भी सुरंग बन नहीं पा रही थी। कारीगर जितनी बार टनल के मलबे को हटाते उतनी बार मलबा फिर से वहां भर जाता। यह सब देखकर अंग्रेज अधिकारियों, कारीगरों के साथ ही आसपास के लोग भी परेशान हो गए। माना जाता है कि तब मां घाठेवाली ने मंदिर के पुजारी के सपने में आकर टनल के पास उनके मंदिर को स्थापित करने को कहा। इसके बाद 1804 में मंदिर को टनल के पास महंत सुखबीर गुसैन द्वारा स्थापित करवाया गया। मंदिर के स्थापित होने के तुरंत बाद आसानी से टनल का कार्य पूरा हो गया जिसे देखकर स्थानीय लोग और अंग्रेज अधिकारी भी दंग रह गए।

इसलिए पड़ा डाटकाली नाम 

उत्तराखंड के जिस इलाके में यह मंदिर स्थापित है वहां सुरंग को डाट भी कहा जाता है। सुरंग के निर्माण कार्य में माता काली का सहयोग भक्तों को प्राप्त हुआ था, इसलिए घाठेवाली माता का नाम डाट काली पड़ गया।

वाहन की देवी के नाम से भी हैं प्रसिद्ध 

डाट काली मंदिर देहरादून से हरिद्वार, ऋषिकेष जाने वाले यात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। यहां पर गाड़ी रोककर माता का आशीर्वाद लेकर ही अधिकतर ड्राइवर आगे जाते हैं। माना जाता है कि मंदिर से ली गई चुनरी वाहन और वाहन के चालक की भी रक्षा करती है। वहीं कई लोग यहां नए वाहन की पूजा के लिए भी आते है। माना जाता है कि मां डाट काली हर प्रकार की सड़क दुर्घटना से भी भक्तों का बचाव करती हैं। इसीलिए मां डाट काली को वाहन की देवी के नाम से भी जाना जाता है।

चढ़ावा और प्रसाद

डाट काली माता के मंदिर में भक्त नारियल, चुनरी और अन्य पूजा सामग्री चढ़ाते हैं। यहां मिलने वाला प्रसाद विशेष रूप से श्रद्धालुओं के बीच लोकप्रिय है।

विशेष पूजा

चैत्र और शारदीय नवरात्रि के साथ ही डाट काली मंदिर में हर शनिवार को भी विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। यहां मांगी गई मन्नत पूरी होती है, ऐसी मान्यताएं। माता काली के आशीर्वाद से दांपत्य जीवन में भी खुशहाली आती है, इसलिए नव विवाहित दंपत्ति भी यहां माथा टेकने अवश्य आते हैं। खासकर स्थानीय लोगों के लिए माता डाट काली संरक्षक देवी की तरह है।

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