78 साल बाद भी मजाक बने ये गांव! नाम लेने से कतराते हैं यहां के लोग, लेकिन अब हो जाएंगे इतिहास

आज़ादी के 78 साल बीत जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के कई गांव ऐसे नामों के साथ दर्ज हैं जो न केवल जातिसूचक हैं बल्कि वहां रहने वाले लोगों के आत्मसम्मान को गहरी ठेस पहुँचाते हैं.चमार टोला, भंगी बस्ती, नकटी, टोनहीनारा, चुड़ैलझरिया, सुवरतला, प्रेतनडीह जैसे नाम आज भी आधिकारिक दस्तावेज़ों और नक्शों पर मौजूद हैं. ये नाम उस ऐतिहासिक सामाजिक भेदभाव और उपेक्षा की पहचान कराते हैं जिनसे ग्रामीण सालों से जूझते आ रहे हैं.

नामों की वजह से गांवो वालों को झेलना पड़ रहा अपमान

इन नामों की वजह से गांवों के निवासियों को लगातार अपमान सहना पड़ता है. चाहे बच्चों का स्कूल में मज़ाक उड़ाया जाना हो, नौकरी या विवाह के संबंध में पूछताछ के दौरान शर्मिंदगी महसूस करना हो, या सरकारी कागजों में गांव का नाम लिखवाते वक्त झिझक-यह दर्द पीढ़ियों से चलता आया है.

अरे, तुम नकटी गांव वाले हो…

नया रायपुर के पास स्थित “नकटी” गांव इसका ज्वलंत उदाहरण है. यहां “नकटी” शब्द का अर्थ ‘नाक कटी’ या ‘बेशर्म स्त्री’ माना जाता है. गांव के बुजुर्गों से लेकर युवाओं तक सभी मानते हैं कि यह नाम उनके सम्मान और सामाजिक व्यवहार पर बुरा असर डालता है. लोग बताते हैं कि नई जगह जाते ही उन्हें परिचय देते वक्त शर्म आती है और अक्सर ताने सुनने पड़ते हैं-“अरे, तुम नकटी गांव वाले हो?”

गांव के लोग लंबे समय से नाम बदलने की मांग कर रहे हैं. इस मुद्दे पर ग्राम सभा में प्रस्ताव भी पारित किया जा चुका है जिसमें गांव का नाम बदलकर ‘सम्मानपुर’ रखने का निर्णय लिया गया है. सरपंच बिहारी यादव के अनुसार, गांव अब सरकारी मंजूरी का इंतजार कर रहा है ताकि आधिकारिक दस्तावेजों में नया नाम दर्ज कराया जा सके और गांव की पहचान अपमान से सम्मान की ओर बढ़ सके.

NHRC ने सभी राज्यों को लिखा पत्र

अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने इस गंभीर मुद्दे पर ध्यान देते हुए सभी राज्यों को पत्र लिखा है और ऐसे गांवों, बस्तियों, कस्बों की विस्तृत सूची मांगी है जिनके नाम अपमानजनक, जातिसूचक या भेदभावपूर्ण हैं. आयोग ने राज्य सरकारों को नाम बदलने की प्रक्रिया जल्द शुरू करने की भी सलाह दी है. यह कदम न सिर्फ सामाजिक समानता और सम्मान की दिशा में महत्वपूर्ण है, बल्कि उन हजारों लोगों की अस्मिता को भी राहत देगा जो आज तक इस कलंक के साथ जीने को मजबूर थे.

अपमानित करने वाले गांवों के नाम-

चमार बस्ती, चमार टोला, चुचरुंगपुर
भंगी टोला, भंगी बस्ती, माकरमुत्ता
टोनहीनारा, दौकीडीह, बोक्करखार
महार टोला, डोमपाड़ा, चुड़ैलझरिया, प्रेतनडीह

इस कार्रवाई से उम्मीद जगी है कि जल्द ही इन गांवों को वे नाम मिल पाएंगे जो सम्मान, समानता और सकारात्मक पहचान को दर्शाएं-और आने वाली पीढ़ियां इस बोझ के साथ ना जीएं कि उनका गांव का नाम ही उनकी हंसी उड़ाता है.

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